Editorial

एडिटोरियल: औद्योगिक विकास और आंतरिक सुविधाएँ

लैमिनेट शीट्स बनानेवाली एक प्रमुख फैक्टरी की ऑफिस में मैंने दीवाल पर लगाये 20 से 22 लाइसेंस देखकर मैंने फैक्टरी के मालिक से पुछा क्या आपको इतने सारे सर्टिफिकेट लेने पड़ते है ? तो उन्होंने कहा हाँ, इन सरकारी प्रक्रिया और कामकाजो को पूरा करने के लिए हमें  एक कर्मचारी रखना पड़ता है। 

इंडियावुड बेंगलुरु में अच्छी तरह संपन्न हुआ। कोरोना संक्रमण के दो साल के अंतराल के बाद औद्योगिक क्षेत्र में उत्साहजनक माहौल देखने को मिल रहा है। वुड इंडस्ट्री का सबसे बड़ा प्रदर्शन मेला अपनी महत्ता और उपयोगिता बनाये रखने में सफल रहा, लगता है कि आने वाले प्रदर्शन मेलों में भी यह उत्साह और विकास की झलक देखने को मिलेगी।

बिजनेश शुरू करने से पहले और बाद में उसे आगे बढ़ाने के लिए जरूरी संशाधन और ब्राण्ड प्रमोशन के प्लेटफोर्म की आवश्यकता होती है, वैसे ही उद्योग शुरु करने से पहले आंतरिक सुविधाएँ या इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राप्त है या नहीं उसके बारे में पूंजी निवेशक जरुर सोचता है।

देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए जितना जरुरी औद्योगिक विकास जरुरी है उतना ही जरुरी औद्योगिक विकास के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर (आंतरिक सुविधाएँ ) मजबूत आधारस्तंभ का काम करता है।

बिजली, पानी, परिवहन, टेली-कोम्युनिकेशन नेटवर्क, सुदृढ़, सरल और कार्यक्षम सरकारी व्यवस्थातंत्र, फाइनान्स व्यवस्था तथा स्थानिय संस्थाओं का सहयोग खूब जरूरी होता है और इनमे से बिजली, पानी, परिवहन और कोम्युनिकेशन व्यवस्था इन्फ्रास्ट्रक्चर के रुप में औद्योगिक व्यवस्था और विकास को गति प्रदान करती है।

आज़ादी के 75 साल बाद सेन्ट्रल, स्टेट और स्थानिय सरकारी तथा सहकारी संस्थाओ और एजन्सिओने देश के औद्योगिक विकास में कितना योगदान दिया यह सवाल आज भी कई उद्योग सैक्टर के मंच पर उठते रहते है। शायद आज़ादी के शुरुआत के 60 साल हमारे यूँ ही कछुए छाप गति में गुजर गये। आज जो कुछ गति देखने को मिल रही है वह हमारे 15 साल के प्रयासो का परिणाम है। पश्चिमी देशो या यूरोपियन देशो की बात छोड़िये, चीन जैसे देशो से प्रेरणा लेकर हमें अपनी औद्योगिक और सरकारी कामकाज में सुधार लाने के प्रयास में जुटे है। “शायद देर आये, दूरस्त आये” का आश्वाशन हम जरुर ले शकते है।

देश के अर्थतंत्र के विकास और गरीबो के कल्याण के लिए औद्योगिक विकास का नकशा छोटे-बड़े शहरों से लेकर छोटे छोटे गाँव या देश के अंतरियाल विस्तारो तक विस्तरना चाहिए।  भारत, विश्वमें दूसरे नंबर का अर्बन आबादी वाला देश है, जिसकी 1/3 जनसंख्या अर्बन इलाके में बसती है। 2050 तक यह संख्या 50 प्रतिशत याने की 81 करोड़ से भी अधिक हो शकती है। इस आबादी के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए औद्योगिक विकास की और तेज करने की गति आवश्यकता है।

देश के कई क्षेत्रो में और विस्तारों में औद्योगिक विकास की गतिविधियाँ देख रही है लेकिन वो भी आजमी कई आंतरिक सुविधाओं से वंचित है। वुड इंडस्ट्री की बात करें तो यमुनानगर, मोरबी, गांधीधाम जैसे औद्योगिक क्षेत्र नज़रो के सामने आ जाते है, जो सिरामिक, पेपर, पैकेजिंग, सुगर मिल, प्लाय-पैनल, लैमिनेट के व्यापार-उद्योग के प्रमुख केंद्र (हब) तो बने है लेकिन पानी-बिजली और रोड-रस्ते की अधूरी सुविधाओं से परेशान है। उद्योगों के लिए कम से कम आंतरिक सुविधाएँ प्राप्त कराना सरकारों का प्रमुख कर्तव्यों में से एक होना चाहिए और साथ में सरल और तरल सरकारी कामकाज मुहैया कराना सरकारी और लाइसेंस प्रक्रियामें तेजी और सरलता लाने के लिए सिंगल विन्डो प्रक्रिया में कुछ ज्यादा सुधार आते नहीं दिखाई दिये।

लैमिनेट शीट्स बनानेवाली एक प्रमुख फैक्टरी की ऑफिस में मैंने दीवाल पर लगाये 20 से 22 लाइसेंस देखकर मैंने फैक्टरी के मालिक से पुछा क्या आपको इतने सारे सर्टिफिकेट लेने पड़ते है ? तो उन्होंने कहा हाँ, इन सरकारी प्रक्रिया और कामकाजो को पूरा करने के लिए हमें  एक कर्मचारी रखना पड़ता है। 

1880 में फ्रान्स से आकर आज प्रचलित हुआ इंफ्रास्ट्रक्चर शब्द क्या अब भी हमारी औद्योगिक विकास की राह देखता खड़ा ही पाया जायेगा? 1987 में अमरिकन नेशनल रिसर्च काउन्सिल ने पब्लिक वर्कस इंफ्रास्ट्रक्चर मोडल बनाया जिसमें हाईवे, एयरपोर्ट, टेलीकम्युनिकेशन और वोटर सप्लाय को सम्मिलित किया गया और समय के साथ मोडल को आधुनिक भी बनाया गया लेकिन छः दशक तक भारत ने उसे पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट (PWD) बनाकर मजाक बनाकर रखा, अब शायद हमें इससे जल्दी छुटकारा पाने की उम्मीद जगी है। जल्द ही यह उम्मीद हकीकत बनकर भारत के हर कोने कोने तक पहुँचे।

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